सूरज का सातवाँ घोड़ा - धर्मवीर भारती
आज मैंने धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखा लघु उपन्यास “सूरज का सातवाँ घोड़ा” पूरा किया। गुनाहों का देवता और कनुप्रिया के बाद यह भारती जी की तीसरी कृति है जिसे मैंने पढ़ा। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता इसकी वर्णन-शैली है। भारती जी ने इसे पारंपरिक कथा संरचना से हटकर लिखा है। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि इसमें ‘एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, बल्कि अनेक कहानियों में एक कहानी है।’ पूरी कहानी माणिक मुल्ला के कथन के माध्यम से चलती है, जो अपने मित्रों को विभिन्न पात्रों की कहानियाँ सुनाते हैं। ये कहानियाँ अलग-अलग होते हुए भी अंततः एक ही जीवन दर्शन की ओर इशारा करती हैं।
यह उपन्यास प्रेम, जीवन, मृत्यु, सामाजिक विडंबनाओं और निम्न-मध्यवर्ग के संघर्षों की एक सुंदर व्याख्या करता है। भारती जी ने प्रेम को सिर्फ एक भावुक अनुभूति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे समाज, वर्ग, और व्यक्ति की मानसिकता के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया है।
यह उपन्यास अपनी गहरी दार्शनिकता और प्रयोगधर्मी लेखन शैली के कारण अद्वितीय है। इसमें यथार्थ और कल्पना का ऐसा समावेश है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। इसका कथानक सरल होते हुए भी गूढ़ है, और इसमें प्रसन्न और दुखांत दोनों ही तत्व मौजूद हैं, जिससे यह हर तरह के पाठकों को आकर्षित करता है।
यदि आप भारतीय समाज, प्रेम और जीवन के यथार्थ को समझने में रुचि रखते हैं, तो यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए। - मनीष
आज मैंने धर्मवीर भारती जी द्वारा लिखा लघु उपन्यास “सूरज का सातवाँ घोड़ा” पूरा किया। गुनाहों का देवता और कनुप्रिया के बाद यह भारती जी की तीसरी कृति है जिसे मैंने पढ़ा। इस उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता इसकी वर्णन-शैली है। भारती जी ने इसे पारंपरिक कथा संरचना से हटकर लिखा है। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि इसमें ‘एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, बल्कि अनेक कहानियों में एक कहानी है।’ पूरी कहानी माणिक मुल्ला के कथन के माध्यम से चलती है, जो अपने मित्रों को विभिन्न पात्रों की कहानियाँ सुनाते हैं। ये कहानियाँ अलग-अलग होते हुए भी अंततः एक ही जीवन दर्शन की ओर इशारा करती हैं।
यह उपन्यास प्रेम, जीवन, मृत्यु, सामाजिक विडंबनाओं और निम्न-मध्यवर्ग के संघर्षों की एक सुंदर व्याख्या करता है। भारती जी ने प्रेम को सिर्फ एक भावुक अनुभूति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे समाज, वर्ग, और व्यक्ति की मानसिकता के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया है।
यह उपन्यास अपनी गहरी दार्शनिकता और प्रयोगधर्मी लेखन शैली के कारण अद्वितीय है। इसमें यथार्थ और कल्पना का ऐसा समावेश है जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है। इसका कथानक सरल होते हुए भी गूढ़ है, और इसमें प्रसन्न और दुखांत दोनों ही तत्व मौजूद हैं, जिससे यह हर तरह के पाठकों को आकर्षित करता है।
यदि आप भारतीय समाज, प्रेम और जीवन के यथार्थ को समझने में रुचि रखते हैं, तो यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए। - मनीष